मेरे सीने
मे बहुत कुछ
दफन है ,
हजारो हलचले
होती हैं हर रोज़
,
फिर भी
खामोश बेह रहा
हूं ,
मैं समुंदर
हूं ..
मुझे रोज़
शाम को होने
वाले जश्न पसंद
नहीं हैं ,
मुझे तन्हा रहने
का शौक है ,
बस इसीलिए
अपने किनारे बने
रेत के आशियानो को
मिटा देता हूं ,
मैं समुंदर
हूं ..
कभी कभी
मुझे भी लोगो
पर गुस्सा आ
जाता है ,
तभी मैं
बेकाबू हो जाता
हूं ,
तभी मुझसे
सब कुछ तहस
नहस हो जाता
है ..
पर मैं
तबाही नहीं चाहता ,
मैं फिर
शांत हो जाता
हूं ,
फिर लोग
मेरे किनारे जश्न
मनIते हैं ,
फिर से
मेरे सीने पर
कश्तीया चलाते हैं ..
मैं फिर
से सब कुछ सह
लेता हूं ..
मैं समुंदर
हूं !!!
मैं समुंदर
हूं !!!
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